June 26, 2020



globalisation ने लोगों को करीब लाया है।
देश और दुनिया की दूरी मिटाई है।
जानकारी को सभी के लिए खोला है और बेहतरी के मौके बनाये है।

सच में!

पर जान तो ऐसा पड़ता हैं की globalisation ने बाज़ारों को मिलाया है
consumers, और consumers बनाये है।
हर एक विचार और सोच का बाज़ारीकरण किया है।

सशक्त और आज़ाद होने के लिए, नौकरी पाने के लिए,
सपने पूरे करने के लिए 'फेयर एंड लवली' क्रीम का विज्ञापन किया है।

छोटे देशों को भी ताकतवर होने का लॉलीपॉप दिखाया है।
एक और साजिश रची है धौंस ज़माने की। 
देश दुनिया को बड़ा बाज़ार बना इंसानियत का मज़ाक उड़ाया है।


May 30, 2020



तोड़ो खोदो हड़पो खींचो
दबाओ खदेड़ो पकड़ो मारो

समेटो बदलो ढको छुपाओ
बेहकाओ भड़काओ पीटो डराओ

झूठ का सच और सच का मज़ाक बनाओ
इश्तेहार को समाचार का रंग लगाओ

आवाज़ संघर्ष विरोध दबाओ
आरोप लगाओ जेल ले जाओ

चुनकर आओ सरकार का वेश चढ़ाओ
राजा बनजाओ वोट भी लेलो प्रजा भी करदो

खदेड़ो ढकेलो उम्मीद और सपने दिखाओ
फिर व्यक्ति और प्रणाली (सिस्टम) को दोषी ठहराओ

थाली ढोल सिटी बजवालो
खुद से खुदका मज़ाक उड़वालो

लोकतंत्र को असफ़ल दिखाके
तानाशाही चर्चे में लाओ

खेल यही बस खेलते जाओ
बहलाओ फुस्लाओ फरेब का जाल बिछाओ
 
सालों दर साल सालों दर साल बस युही
युही अलग अलग चेहरे पहनकर सत्ता हाथीओ

दर्द एकभाव संवेदना इंसानियत   
इन पर चादर डालो या अच्छा हो गर दफ़ना डालो

बस याद रहे इक बात ज़रूरी
सबसे ज़रुरी बहुत ज़रुरी

तोड़ो खोदो हड़पो खींचो
दबाओ खदेड़ो पकड़ो मारो

समेटो बदलो ढको छुपाओ
बेहकाओ भड़काओ पीटो डराओ


May 19, 2020



एक रास्ता था 
एक थी पगडंडी 


दोनों की आपस में बहस जो छिड़ गयी 
रास्ता कहता तू मुझे से आ मिलती है 
पगडंडी झट जवाब ये देती 
मैं तो यही हूँ रहती  
तू मुझसे आ मिलता है


रास्ता अपनी बड़ाई में
कई गुण गाता
गाड़ी का आना
सामान पहुँचना
सुख सुविधा और जानकारी लाना


पगडंडी मुस्कुराती बस इतना कहती 
मेरा होना उतना ज़रूरी 
जब तक पड़ते पाँव 
फिर मिल जाना या ग़ुम होना 
यही है मेरा नाम


रास्ते को कुछ समझ न आता 
आग बबूला होकर कहता 
मुझ पर कई सारा खर्चा होता 
दूर दूर तक मांग हैं होती
मोर्चे भी निकलते रैली भी होती 


पगडंडी सुनती क्या न करती
आना जाना मिलना मिलाना 
सामान संदेशे सपने पहुँचाना
ये तो मुझ से भी होता
तू युही खुद पर इतराता 


रास्ता हँसा
दहाड़कर और बोला
तू किस वहम की हुई शिकार
मेरी गति के आगे क्या तेरी औकात 
मेरे लिए तो सरकार ने बनाया पूरा विभाग


पगडंडी कुछ सोच में पड़ गयी
रास्ते की इस बात से परेशां सी हो गयी
बात सही थी मन ही मन कह गयी
सरकार का रास्ते से लगाव
क्या दर्शाता ये साफ़ समझ गयी


मन में दौड़े कई सवाल
सरकारों की नीति से लेकर
बाजार और लोगों की आदत को लेके
पर सबसे ज़रूरी बना सवाल
अपने वजुद की हो पहचान


आखिर क्या हैं उनका काम
रास्ता या पगडंडी हो जिसका नाम
ज़रूरतों को पूरा करना या नयी ज़रुरत पैदा करना
सृष्टि का हिस्सा बन रहना
या मुनाफे का ज़रिया बनना


April 17, 2020

लोगों का राज, लोगों द्वारा, लोगों के लिए


क्या गड़बड़ 
क्या घोटाला 
चाबी में है ताला 

संविधान का कहना है क्या
लोकतंत्र है क्या
सरकार और जनता का रिश्ता हो क्या

आदेश दे कौन 
आदेश का पालन करे कौन
नियोजन और कार्य प्रगति की पूरी सूचना हो किसे

क्या नियमनुसार चल रहा है सबकुछ
क्या प्रजा को है सब पता
क्या सब प्रजा को सब पता है 

September 07, 2019


इन बिगड़ते हालात का
बयान क्या करें 
सब्र और संघर्ष 
उम्मीद और आक्रोश 
के मौसम साथ हो लिए  

क्यों कर आख़िर 
ये रंग इतना बदल गया 
खान-पान का असर 
आखिरकार हो ही गया 

बात ये शाकाहारी मांसाहारी 
की बना दी गयी 
जबके असल गुन्हेगार तो 
विकास-ए-ताज से सम्मानित गए 

क्यों नहीं देख पाए हम 
की बेमौसमी सुन्दर दिखनेवाली 
सब्ज़ियां और फल बाजार में ही नहीं 
हमारे दिल और दिमाग पर छा जायेंगे 

हम इंसान न रहकर 
फरेब के नकाब पहनकर 
बाज़ार में बिकते 
सामान से बन जायेंगे