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या फिर
बाज़ार
कौन तय करता है?
मिटटी
कई सालों बाद फिर मिटटी को छुआ
उसकी खुसबू ली और उस पर चला है
जाने ये कैसा रिश्ता है जो न होने पर सताता है
और हर बार लौटकर आता है
कई सालों तक ये रिश्ता बस कुछ पल का एहसास रहा
कभी कभी की लुत्फ़ का सिलसिला चलता रहे
मिटटी का साथ अब फिर बनने को है
खोया हुआ एक नया रिश्ता फिर उभरने को है