समाज या बाज़ार
टॉलरेंस, मौलिक अधिकार
धर्म निरपेक्ष, नागरिकत्व
न्याय, जनतंत्र, संविधान
ये खोकले शब्द है या मूल्य
ऊँची ऊँची इमारतों में
लम्बे लम्बे फ्लाईओवर तले
दौड़ती मेट्रो की पटरियों के नीचे
ये हो रहे है दफ़न
बन रहा है इनका मज़ाक
बेचा जा रहा है इन्हे
ख़बरों में, कार्यक्रमो में
ज़ोर ज़बरदस्ती और पिस्तौल से
मुनाफा और सत्ता
की बुआई हो रही है
कैसे रिश्ता बना रहे है
कैसा समाज चाह रहे है
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