March 03, 2018

बीते लम्हे


बिलकुल
आसमाँ में तारे जितने
बीते लम्हे उतने

कुछ हरदम टिमटिमाते
बाकी जाने क्यों नज़र नहीं आते
छुपे ही सही पर होते ज़रूर

कहने अपनी कहानी समय पर
बारी-बारी जग जाते सारे
दबे छुपे टिमटिमाते

बीत तो जाते
पर साथ ही रहते
दबे पाँव ऊँगली को थामे

ख़ुशी आँसू
रूमानी और नूरानी अनुभव
बिन आवाज़ भिखेरते रहते 

काली रात ख़ामोशी के साथ
मुझ में उतरते समा से जाते
चुपकेसे मौजूद बन जाते ये लम्हे