बीते लम्हे
बिलकुल
आसमाँ में तारे जितने
बीते लम्हे उतने
कुछ हरदम टिमटिमाते
बाकी जाने क्यों नज़र नहीं आते
छुपे ही सही पर होते ज़रूर
कहने अपनी कहानी समय पर
बारी-बारी जग जाते सारे
दबे छुपे टिमटिमाते
बीत तो जाते
पर साथ ही रहते
दबे पाँव ऊँगली को थामे
ख़ुशी आँसू
रूमानी और नूरानी अनुभव
बिन आवाज़ भिखेरते रहते
काली रात ख़ामोशी के साथ
मुझ में उतरते समा से जाते
चुपकेसे मौजूद बन जाते ये लम्हे
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