November 20, 2016


... सारा मुल्क पंसारी की दूकान बन गया है
मालूम न था इतना कुछ है घर में बेचने के लिए
ज़मीन से लेकर ज़मीर तक सब बिक रहा है
- ग़ालिब

November 11, 2016




हम भी इंसान
तुम भी इंसान
क्या अफसर
क्या जंगलवासी

तुम्हारा बॉक्साइट
हमारा भगवन
तुम्हारे लिए पानी
हमारा जीवन दान

लाठी गोली तुम्हारे साथी
बहता झरना हमारे गीत
गाड़ी - यूनिफार्म तुम्हारी ताकत
साथ में जीना हमारी हिम्मत

कागज़ कलम काले अक्षर
क्या उनकी औकात?
जब बजते हमारे चांगु - ताशे
जब गूंजती पैरो की आवाज़

कागज़ - रुपैये से क्या बहलाओगे
खड़ा हमारे साथ पेड़-पहाड़
कांधमाल में चल रहा संघर्ष
साथ खड़ा है बस्तर

हम भी इंसान
तुम भी इंसान
क्या अफसर
क्या जंगलवासी

रुकावट नहीं किसी तरह की
साथ जो बैठो दोस्त बनकर
गर जो आते ज़मीन के वास्ते
पानी, पहाड़, जंगल के रास्ते

एक कदम न पड़ने देंगे
एक पेड़ न कटने देंगे
नहीं खोदने देंगे पहाड़
नहीं हम देंगे, नहीं हम देंगे
चाहे कर लो जितने वार


- यह कविता कार्यशाला के दौरान सहभागियों के साथ मिलकर बनायीं गयी