कैसा गजब का नाता है
दिलो-दिमाग पर छा जाता है
कौन किसके बस में है
क्या ये पता चल पाता है
कभी मन की कहता है
तो कभी मन को कहता है
जानकारी-मनोरंजन या फिर विज्ञापन...
पैसे लेकर या मुफ्त ही लुभाता है
क्या उसकी अपनी कोई भाषा है
स्वयं कहता... या कोई कहलवाता है
जानना-समझना है, विश्लेषण करना है
उपभोगता क्यों, हमें उत्पादक बनना है
- प्रबीर और अंजु