November 03, 2012

एक राह
कुछ
कच्ची पक्की
कुछ सीधी टेढ़ी

कई राही
कुछ दौड़ते भागते
कुछ भीड़ में खो जाते

एक दिन
राह ने पुछा
राही से

इस तरह
दौड़ दौड़ के
कहाँ जा रहे हो ?

क्यों
मुझे पीछे
छोड़े जा रहे हो?

राही ने
मानो सुना
ही नहीं

कुछ देर हुई
राह
फिर बोली

ये दौड़
कहाँ
के लिए है ?

राही
अपने कदम 
तेज़ी से बढ़ाने लगा

राह को
अब भी नहीं समझा
की क्या हो रहा है

थके हांफते राही को देख  
कुछ देर बाद
राह फिर बोली

कुछ दम ले लो
इस मोड़ पर थम लो
आखिर इतनी जल्दी क्या है

एक दो
सौ दोसो
हजारों

जाने कितने ही
राही
बस गुजरते चले गए

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