वक़्त वक़्त की बात
वक़्त बस गुज़र जाता
वो कब हाथ आता
यादों के रूप में
अपनी छाप छोड़ जाता
अब तक ये जाना
सदियों से इसे माना
पर कुछ पल के लिए ही सही
गर वक़्त वही थम जाये
आगे बढ़ने से इंकार करे
और उसी घडी में जम जाये
ये नफरत फ़साद भरा मौहाल
ये लूट दबोच की गर्मी
ये मेरा तेरा अपना उसका
सब से हम और फिर सिर्फ मैं
यही आज कल परसों
हर पल कई बरसों
वक़्त
कहाँ
गुज़रता जाता है
कहानी वही दोहराता है
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