April 23, 2017

मुलाक़ात


इस भाग दौड़ की ज़िन्दगी में 
फिर मुलाक़ात हुई, दोराह पर

हमेशा की तरह मैं ने कुछ कहा, उसने अपनी कही 
फिर हम चल दिए अपनी-अपनी राह

हर बार की मुलाक़ात, बस अब इतनी ही होती
नज़र से नज़र मिलती, आँख मूंद लेती

याद है वो दिन, जब मैं और खुद साथ होते
और होते खेल, गप्पे, कहानियाँ और अनगिनत राज़

फिर कुछ ऐसा घटता गया
जो मुझे खुद से, दूर करता गया

शायद ज़िन्दगी के खेल की जीत हुई
मैं और खुद, दो व्यक्ति हुई

खुद अब भी दो राहे पर खड़ी है
इंतज़ार कर रही है, मेरा

No comments:

Post a Comment