इन बिगड़ते हालात का
बयान क्या करें
सब्र और संघर्ष
उम्मीद और आक्रोश
के मौसम साथ हो लिए
क्यों कर आख़िर
ये रंग इतना बदल गया
खान-पान का असर
आखिरकार हो ही गया
बात ये शाकाहारी मांसाहारी
की बना दी गयी
जबके असल गुन्हेगार तो
विकास-ए-ताज से सम्मानित गए
क्यों नहीं देख पाए हम
की बेमौसमी सुन्दर दिखनेवाली
सब्ज़ियां और फल बाजार में ही नहीं
हमारे दिल और दिमाग पर छा जायेंगे
हम इंसान न रहकर
फरेब के नकाब पहनकर
बाज़ार में बिकते
सामान से बन जायेंगे
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