May 19, 2020



एक रास्ता था 
एक थी पगडंडी 


दोनों की आपस में बहस जो छिड़ गयी 
रास्ता कहता तू मुझे से आ मिलती है 
पगडंडी झट जवाब ये देती 
मैं तो यही हूँ रहती  
तू मुझसे आ मिलता है


रास्ता अपनी बड़ाई में
कई गुण गाता
गाड़ी का आना
सामान पहुँचना
सुख सुविधा और जानकारी लाना


पगडंडी मुस्कुराती बस इतना कहती 
मेरा होना उतना ज़रूरी 
जब तक पड़ते पाँव 
फिर मिल जाना या ग़ुम होना 
यही है मेरा नाम


रास्ते को कुछ समझ न आता 
आग बबूला होकर कहता 
मुझ पर कई सारा खर्चा होता 
दूर दूर तक मांग हैं होती
मोर्चे भी निकलते रैली भी होती 


पगडंडी सुनती क्या न करती
आना जाना मिलना मिलाना 
सामान संदेशे सपने पहुँचाना
ये तो मुझ से भी होता
तू युही खुद पर इतराता 


रास्ता हँसा
दहाड़कर और बोला
तू किस वहम की हुई शिकार
मेरी गति के आगे क्या तेरी औकात 
मेरे लिए तो सरकार ने बनाया पूरा विभाग


पगडंडी कुछ सोच में पड़ गयी
रास्ते की इस बात से परेशां सी हो गयी
बात सही थी मन ही मन कह गयी
सरकार का रास्ते से लगाव
क्या दर्शाता ये साफ़ समझ गयी


मन में दौड़े कई सवाल
सरकारों की नीति से लेकर
बाजार और लोगों की आदत को लेके
पर सबसे ज़रूरी बना सवाल
अपने वजुद की हो पहचान


आखिर क्या हैं उनका काम
रास्ता या पगडंडी हो जिसका नाम
ज़रूरतों को पूरा करना या नयी ज़रुरत पैदा करना
सृष्टि का हिस्सा बन रहना
या मुनाफे का ज़रिया बनना


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